Ashfaqulla Khan and Ram Prasad Bismil Death Anniversary: रामप्रसाद और अशफाक काकोरी कांड के मुख्य आरोपी होने के के साथ बहुत ही अच्छे दोस्त भी थे। रामप्रसाद ब्राह्मण थे और अशफाक मुस्लिम, लेकिन दोनों ने दोस्ती के साथ देश के लिए मर मिटने की जो कसम खाई थी उसे भी बखूबी निभाया था। दोनो ने भारत की आजादी के सपने साथ में देखे थे और इस सपना को एक साथ पूरा भी किया।

अशफाक उल्ला जीवनी-

अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। ये चार भाई थे जिसमें सबसे छोटे थे। अशफाक को बचपन से ही शेरो-शायरी का शौक था। जब भी शेरो-शायरी की बात होती थी तो रामप्रसाद बिस्मिल का नाम उनके घर में लिया जाता था। जिसकी वजह से अशफाक उनके मुरीद हो गए थे। रामप्रसाद असफाक के बड़े भाई के साथ पढ़ते थे।

मैनपुरी कांस्पिरेसी की वजह से रामप्रसाद का नाम अंग्रेजो के खिलाफ साजिश रचने में सामने आया था। इसलिए उन्होने रामप्रसाद से मिलने की योजना बनाई। जब हिन्दुस्तान में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन में चरम सीमा पर थी। तब रामप्रसाद शाहजहांपुर में एक सभा को संबोधित करने पहुँचे जहाँ पर अशफाक भी रामप्रसाद से मिले और अपना परिचय उनके दोस्त के छोटे भाई के रूप में दिया। कहा कि वो भी हसरत नाम से शेरो-शायरी करते हैं। तब रामप्रसाद उनको अपने साथ ले गए और उनकी शायरी सुनी। और उसके बाद दोनो की दोस्ती गहरी होती चली गई। जहाँ भी जाते दोनो साथ जाते।

असहयोग आंदोलन की वापसी पर नाराज-

जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। जब देश के कई युवा उनके फैसले से नाराज हुए थे। जिसमें रामप्रसाद व अशफाक भी थे। उनको मानना था कि आजादी माँग कर नहीं मिलेगी। युवा क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गए।

काकोरी कांड-

उन लोगो का मानना था कि अंग्रेजो की संख्या कम होने के बावजूद भी हम पर राज कर पा रहे हैं क्योकि उनके पास हमशे ज्यादा हथियार हैं। जिसके बाद उन्होने काकोरी कांड को अंजाम देने का फैंसला लिया। दोनो ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 8 अगस्त को इस योजना पर मुहर लगी और 9 अगस्त को वो इसे अंजाम देने पहुंचे। जिसको लीड रामप्रसाद कर रहे थे। इस घटना के बाद अंग्रेजो की नीव हिल गई और उन्होने क्रांतिकारियों को पकड़ने के आदेश दिये।

सबसे पहले 26 सितंबर 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल गिरफ्तार किया गया था। अशफाक को पकड़ने में ब्रिटिश सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन एक दोस्त के धोखा देने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

अंग्रेजो ने हिंदू-मुस्लिम के जरिए तोड़नी चाही दोस्ती-

बताया जाता हैं कि उनकी गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजो ने हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला लेकिन दोने ने जबान नहीं खोला व दोस्ती को बरकार रखा। और ये मामला आदालत तक पहुँच गया था। जहाँ अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रौशन सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। कहा जाता हैं कि जब अशफाक को 19 दिसम्बर, 1927 को जब अशफाक उल्ला को फांसी देने के लिए जंजीरें खोली गईं तो उन्होंने फांसी का फंदा चूमा और कहा- मेरे हाथ लोगों की हत्याओं से सने हुए नहीं हैं। मुझ पर लगे आरोप झूठे हैं। अब अल्लाह ही मेरा फैसला करेगा। और फांसी के फंदे पर चढ़ गए। और वहीं से दोनो की दोस्ती अमर हो गई।