Bhimrao Ambedkar भगवदगीता के घोर आलोचक थे, जानिए इसके पीछे की वजह
Bhimrao Ambedkar Death Anniversary: आज भारत के संविधान रचयिता बाबा भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि हैं। आज के ही दिन बाबा भीमराव अंबेडकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) की परंपरा को उनके निधन के बाद उनके अनुयायी के बाद उनके परिवार ने आगे बढ़ाया था। बाबा भीमराव अंबेडकर को कानून के विशेषज्ञ, अर्थशास्त्र के ज्ञाता, संविधान निर्माता के अलावा उन्हें दलितों का उद्धार करने वाला मसीहा माना जाता था। 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हुआ था। उसके बाद से हर साल 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaprinirvan Day) के रूप में मनाया जाता हैं।
बाबा भीमराव अंबेडकर को किताबे पढ़ने का बहुत शौक था। बता दे कि चर्चित किताब 'इनसाइड एशिया' के लेखक जॉन गुंथेर लिखते हैं, 1938 में जब राजगृह में मेरी मुलाक़ात बाबा साहेब अम्बेडकर से हुई तो उनके पास 8 हजार किताबे थीं और उनकी मौत के दिन तक किताबों की संख्या 35,000 हो चुकी थी।
बाबा भीमराव अंबेडकर ने की भगवद गीता की आलोचना-
बाबा साहेब के सहयोगी शंकरानंद शास्त्री ने किताब 'माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर' में लिखा हैं कि 31 मार्च 1950 को उस दौर के दिग्गज उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के बड़े भाई जुगल किशोर बिड़ला बाबा साहेब से मिलने के लिए उनके घर गए थे। तब बिड़ला ने बाबा साहेब से पूछा कि आपने मद्रास में हजारों लोगों की भीड़ के सामने भगवदगीता की आलोचना क्यों की थी।
उस समय उन्होने बताया कि गीता हिंदुओं की धार्मिक किताब हैं। आपको इसकी आलोचना करने की जगह हैं हिंदू धर्म को मजबूत बनाना चाहिए। तब अबंडकर ने उनको जवाब देते हुए कहा कि- मैंने भगवदगीता की आलोचना इसलिए की क्योंकि इसमें समाज को बांटने की शिक्षा दी गई है। बाबा साहेब का मानना था कि यह बांटने का काम करती है। बाबा साहेब ने मद्रास में पेरियार के सामने गीता की आलोचना की थी।