Education: सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर यानि ईडब्लू एस छात्रो को एडमिशन मिलने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। जिसकी वजह से दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार को निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित करने का निर्देश जरी किया हैं। अदालत ने कहा कि इन बच्चों को शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार का लाभ उठाने के लिए अदालत का रुख करने के लिए मजबूर किया जा रहा हैं जोकि सही नहीं हैं।

अदालत ने कहा कि संबंधित सभी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल यह सुनिश्चित करेंगे कि शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम में परिभाषित 'कमजोर वर्गों' से संबंधित और शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा किसी एकेडमिक सेशन में प्रवेश के लिए अनुशंसित किसी भी छात्र को प्रवेश उन्हें वंचित ना कराया जाएगा। ईडब्लूएस छात्रो के वकील ने बताया कि कई स्कूलो में माता-पिता व बच्चो के प्रवेश के लिए गेट बंद कर दिए गए हैं।

अदालत ने कहा, इन बच्चों ने और कोई अपराध नहीं किया है, सिवाय इसके कि वे गरीबी में पैदा हुए हैं। इस अदालत की अंतरात्मा पर गरीब बच्चों और उनके माता-पिता के कष्टों का भार है। स्थिति भयावह और पीड़ादायक है। यह न्याय का उपहास और सरकार द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई हैं।पूर्वोक्त विश्लेषण के साथ-साथ प्राथमिक शिक्षा स्तर पर आरटीई अधिनियम के कार्यान्वयन को लेकर दिल्ली एनसीटी में दयनीय स्थिति में सुधार करने के लिए कमजोर वर्ग से संबंधित गरीब बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित करने के संबंध में डीओई को निर्देश जारी करने को लेकर इस अदालत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करना सही हैं।

बता दे कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी के इन छात्रों को दिल्ली सरकार के डीओई द्वारा पत्र दिया गया है, जिसमें आरटीई अधिनियम की योजना के तहत राष्ट्रीय राजधानी में संबंधित स्कूलों में उनके प्रवेश की पुष्टि की गयी हैं। ये पत्र डीओई द्वारा आयोजित ड्रा के अनुसार जारी किए गए थे और परिणाम सभी स्कूलों के साथ-साथ ईडब्ल्यूएस श्रेणी से संबंधित कुछ भाग्यशाली बच्चों को इसके लिए चुना गया था। चुने जाने के बाद भी इन छात्रो को स्कूलो में एडमिशन नहीं मिल रहा था।