Mother Teresa Birthday: मदर टेरेसा की जिंदगी नहीं थी आसान भीख तक माँगना पड़ा था उन्हें
Mother Teresa Birthday: मदर टेरेसा वो नाम शायद ही कोई ऐसा हो जो उन्हें नहीं जानता हो। ऐसा लगता हैं, कि उन्होने जन्म ही बीमारो व लाचारो की सेवा करने के लिया था। 26 अगस्त, 1910 को टेरेसा का जन्म भले ही स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ, लेकिन उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया था। उनकी जिंदगी इतनी आसान नहीं थी, जितनी लगती हैं, उनको मृत्यु के बाद भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। संघर्ष में कई साल गुजारे लेकिन प्रार्थना और सेवाभाव के जज्बे से वे आगे बढ़ती रहीं और आज का दिन ऐसा हैं, जब पूरी दुनिया उनके काम की और जज्बे की तारीफ करता हैं।
Mother Teresa Biography-
26 अगस्त 1910 को अल्बानिया में जन्मीं मदर टेरेसा पैदा होने के अगले ही दिन ही उन्हें ईसाई धर्म की दीक्षा मिल गई.इसी लिए वे अपना जन्मदिन 27 अगस्त को ही मनाया करती थीं। एक्नेस पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन से काफी प्रभावित होती रही हैं।
भारत आने के बाद कभी नहीं देखा अपने घरवालो को-
18 साल की उम्र तक एक्नेस नेअपना जीवन धर्म को समर्पित करने का फैसला कर लिया था। इसी साल वे आयरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी चली गईं जिससे वे अंग्रेजी सीख कर भारत जाने का अपना सपना पूरा कर सके। और वो भारत आ गयी यहाँ आने के बाद वो कभी वापस अपने परिवार के पास लौट के नहीं गयी।
मदर टेरेसा दि अनटोल्ड स्टोरी में की उनकी आलोचना-
ब्रिटिश भारतीय लेखक डॉ अरूप चटर्जी ने उनपर एक किताब लिखी- 'मदर टेरेसा : दि अनटोल्ड स्टोरी'. वह खुद मदर टेरेसा के कोलकाता स्थित सेवाघर में काम कर चुके थे। उन्होने अपनी किताब में मदर टेरेसा की आलोचना की थी। उन्होने लिखा हैं कि- मदर टेरेसा के सेवाघरों में लाचारों की संख्या हजारों में नहीं थी। इलाज के लिए सेहतमंद तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। संस्था को मिलने वाली डोनेशन को लेकर भी उन्होंने अवैध पैसे लेने के आरोप लगाए थे।
तो वहीं 1997 में उनके देहांंत के बाद भी उनकी आलोचना होती रहीं लेकिन आरोपों की न तो पुख्ता जांच हुई न ही पुष्टि भी ना हो पायी थी. लेखक और पत्रकार मिलानी मैक्डॉनफ ने लिखा, "मदर टेरेसा की आलोचना की गई कि वह वो नहीं हो पाईं जो करना चाहती थीं. वो नहीं कर पाईं, जो करना चाहिए था। मिलानी के मुताबिक, मदर टेरेसा गरीबी से लड़ने का कोई अभियान नहीं चला रही थीं बल्कि वो समाज के हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा कर रही थी।
मदर टेरेसा ने बदला अपना नाम-
1931 में उन्होंने पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली और अपना नाम एक्नेस (Mother Teresa Real Name) की जगह टेरेसा अपना लिया। उन्होंने कलकत्ता में 20 साल तक एनटैले के लोरेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया था। लेकिन उनका मन कलकत्ता में गरीबी देखकर बहुत द्रवित हो उठा था।
मदर टेरेसा को मागंनी पड़ी भीख-
ऐसा कहा जाता हैं कि उन्होने लोगो की मद्द के लिए स्कूल छोड़ने की इजाजत मांग ली। और उन्होंने पूरी तरह से गरीबों के लिए मिशिनरी कार्य 1948 में शुरु किया। उन्होंने दो साधारण सी कपास की साड़ी लीं जिनमें नीली पट्टी थी। इसके बाद वे गरीबों की झोपड़ पट्टी में रहने लगी थी। शुरूआत के समय में उन्हें खुद के लिए भी खाना खाने के लिए भीग मांगनी पड़ी थी।
इमरेंजसी के समय उनके बयान पर उठे थे सवाल-
ऐसा कहा जाता हैं कि इंदिरा गांधी की सरकार में जब इमरजेंसी लगाई गई थी, तब देशभर में विरोध हो रहे थे, लेकिन मदर टेरेसा ने इसके समर्थन में बयान दिया था। और उन्होंने तब कहा था, "लोग इससे खुश हैं. उनके पास ज्यादा रोजगार है। विरोध और हड़तालें भी कम हो रही है।." तब कहा गया कि इंदिरा से दोस्ती के कारण उन्होंने ऐसा बयान दिया हैं। कैथोलिक चर्च से जुड़े मीडिया ने भी इस बयान पर नाराजगी जताई थी। इतिहासकार विजय प्रसाद ने मदर टेरेसा नस्लवाद को बढ़ावा देने तक का आरोप उनपर लगा दिया था।