Ashok Emblem History; जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने नये पार्लियामेंट के छत पर अशोक स्तंभ का अनावरण किया हैं। जिसके बाद से विपक्ष के नेताओं द्वारा इसको लेकर विवाद खड़ा कर दिया गया हैं। उनका कहना हैं, सारनाथ में जो अशोक का स्तंभ हैं उसपर लगे शेर शांत की मुद्रा में हैं तथा सेंट्रल विस्टा के छत पर लगे शेर अक्रामक अवस्था में हैं।

अशोक स्तंभ का इतिहास-

अशोक स्तंभ का इतिहास भारत के पूर्व सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। ये काफी शक्तिशाली राजा थे। 304 ईसा पूर्व में अशोक का जन्म हुआ था। उनका राज्य तक्षशिला से लेकर मैसूर तक फैला हुआ था। तो वही पूर्व में बंग्लादेश से लेकर ईरान तक फैला हुआ था। ऐसा कहा जाता हैं 261 ईशा पूर्व कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार ने सम्राट अशोक का ह्रद्धय परिवर्तन हो गया था। और उन्होने युद्ध को छोड़कर बौद्ध धर्म को अपना लिया। और जिसके बाद अशोक ने कई सारे स्तंभ बनवाये जिसमें शेर की आकृति बनी हुई हैं। सारनाथ और सांची में उनके स्तंभ में जो शेर बने हुए हैं वो शांत अवस्था में नजर आते हैं। जिसका सबंध बौद्ध धर्म से बताया जाता हैं।

इस स्तंभ में चार शेर हैं तथा नीचे की ओर हाथी व घोड़े बने हुए हैं। बीच में धर्म चक्र बना हुआ हैं। यह प्रतीक सम्राट अशोक की युद्ध और शांति की नीति को दर्शाता है। इसमें के चार शेर आत्मविश्वास, शक्ति, साहस और गौरव को दिखाते हैं।

कब बना अशोक स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक-

अशोक स्तंभ 26 अगस्त 1950 को राष्ट्रीय प्रतीक बना था। इस स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते लिखा हुआ हैं। जो कि मुंडकोपनिषद से लिया गया हैं।

अशोक स्तंभ को लेकर एक कानून बनाया गया हैं-

अशोक स्तंभ को जब राष्ट्रीय प्रतीक माना गया तो उसको लेकर कुछ नियम व कानून भी बनाए गए। नियमानुसार अशोक स्तंभ का प्रयोग सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही कर सकते हैं। जिसमें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधाक, राज्यपाल, उपराज्यपा और उच्च अधिकारी शामिल हैं।

राष्ट्रीय चिन्ह्रो का दुर्प्रयोग करने पर मिलने वाली सजा-

राष्ट्रीय चिह्नों का दुरुपयोग रोकने केलिए भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग रोकथाम) कानून 2000 बनाया गया हैं। जिसमें 2007 में संसोधन किया गया हैं। इस संसोधन के अनुसार अगर कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का उपयोग करता है तो उसको दो साल की कैद या 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों ही देना पड़ सकता हैं।