जोशीमठ जो आज सुर्खियों में छाया हैं कभी बसाया था उसे भगवान विष्णु के अवतार ने

Joshimath Story in Hindi: उत्तराखंड का बेहद सुंदर शहर जोशीमठ पर इस समय मुसीबतो का पहाड़ टूट गया हैं। इतिहास कि माने तो जोशीमठ को कभी विष्णु के अवतार कहे जाने वाले कत्यूरी राजा ने बसाया था। बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मठ की स्थापना की और इसका नाम ज्योर्तिमठ पड़ा था। कत्यूरी राजवंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के मत अलग-अलग हैं।
ई टी एटकिंसन ने भी हिमालय गजेटियर में कत्यूरी राजाओं का जिक्र किया है, उन्होंने इन्हें कुमाऊं का ही मूल निवासी माना है. जिनकी जड़ें गोमती के तट पर स्थित खंडहर हो चुके नगर करवीरपुर में थी। कत्यूरी राजवंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के मत अलग-अलग हैं। दरअसल कत्यूरी राजवंश की उत्पत्ति का इतिहास अलग-अलग मिले ताम्रपत्र और शिलालेखों के आधार पर लिखा गया है। कुछ इतिहासकार इन्हें कुणिंद वंश से जोड़ते हैं। तो वहीं इतिहासकार बद्रीदत्त पांडेय इनका खंडन करते हैं और कत्यूरियों को अयोध्या के शालिवाहन शासक घराने का वंशन मानते थे। राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें शक वंश से संबंधित माना है, जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहले भारत में थे।
कत्यूर राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला पहला ऐतिहासिक शक्तिशाली राजवंश था। इसे कार्तिकेयपुर वंश के नाम से भी जाना जाता है। इस वंश के संस्थापक बसंत देव थे। बसंत देव कन्नौज के राजा यशोवर्मन के सामंत थे। तथा यशोवर्मन मौखरी वंश से थे, ऐसा कहा जाता है कि यशोवर्मन ने उत्तराखंड जीतने के बाद बसंतदेव को उसका सामंत बना दिया था। तो वहीं उन्होने इसे स्वत्रंत राज्य बना दिया था। कत्यूरी राजवंश की तीन शाखाओं ने 300 साल तक राज किया था। राजवंश का इतिहास इसके बागेश्वर, कंडारा, पांडुकेश्वर एवं बैजनाथ में कुटिला लिपि में मिले ताम्रलेखों के आधार पर लिखा गया हैं।
जोशीमठ का नरसिंह मंदिर बसंत देव ने ही बनवाया था। इस कत्यूरी राजवंश का सबसे प्रतापी राजा इष्टदेवगण का पुत्र राजा ललितसुर था। जिसके बारे में कहा गया हैं कि गरुण भद्र की उपाधि दी गई थी। तथा ये भगवान विष्णु के अवतार (बराहअवतार) के समान बताया जाता हैं। ललितसुर का पुत्र ही भूदेव था. जिन्होंने बैजनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। भूदेव बौद्ध धर्म के विरोधी थे।