Jyotiba Phule Death Anniversary: ज्योतिबा फूले वो नाम जिन्होने महिलाओं की शिक्षा के लिए उठाए कई सारे अहम कदम उठाए थे। बता दे कि ज्योतिबा फुले ने साल 1854 में भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला बालिका स्कूल खोला गया था। ज्योतिराव गोविंदराव फुले को 19वीं सदी का एक महान समाजसुधारक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी माना गया था। शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लेकर आए थे। 28 नवंबर 1890 को 63 साल की अवस्‍था में उनका निधन हो गया था। आज उनकी पुण्‍यतिथि है। ज्योतिबा फुले के उत्कृष्ट कार्यो की वजह से उनके नाम डाक टिकट भी जारी किया जा चुका हैं।

ज्योतिबा फुले बॉयोग्राफी-

11 अप्रैल 1827 को पुणे के एक माली परिवार में जन्‍मे ज्‍योतिबा जब 7 साल के हुए तो उन्‍हें गांव के स्‍कूल में भेजा गया था। जहाँ उनको जातिगत व्यवहार का सामना करना पड़ा था। जिसकी वजह से उनको स्कूल से निकाल दिया गया था। इस घटना ने भी उनकी शिक्षा के प्रति रूचि को और बढ़ा दिया और उन्होने अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए घर पर ही पढ़ाई शुरू कर दी। 1 अप्रैल 1827 को पुणे के एक माली परिवार में जन्‍मे ज्‍योतिबा जब 7 साल के हुए तो उन्‍हें गांव के स्‍कूल में भेजा था।

जिसके बाद ज्योतिबा फुले शिक्षा के महत्व को समझकर इस क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए अग्रसर हुए दलितों और महिलाओं का उत्‍थान. शिक्षा के महत्‍व को उन्‍होंने ऐसे समझाया- "विद्या बिना मति गई, मति बिना नीति गई/ नीति बिना गति गई, गति बिना वित्त गया/ वित्त बिना शूद गए, इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किए." उन्‍होंने अपना पूरा जीवन वंचित समाज को सशक्‍त बनाने के लिए न्यौक्षावर कर दिया।

महिलाओं के लिए किया काफी उत्कृष्ट कार्य-

जब लोग महिलाओं को शिक्षा से दूर रखते थे और उन्हें घर से निकलने तक नहीं देते थे। उस समय ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को मिशनरीज स्‍कूल में ट्रेनिंग दिलाकर एक शिक्षक के रूप में तैयार किया। तथा इसके अलावा ज्योतिबा फुले ने साल 1854 में भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला बालिका स्कूल खोला इस तरह उन्होने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई।

उस समय महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय थी। ज्योतिबा फुले ने बाल विवाह पर रोक लगाने की माँग की तो वहीं विधवा विवाह को बढ़ावा दिया। इसके अलावा गर्भव‍ती विधवाओं की. ऐसे में उनके लिए ज्योतिबा ने एक घर खोला, जहां समाज से निकाली गई ऐसी महिलाएं आकर बच्‍चे को जन्‍म दे सकें और रह सकें. उनकी समाजसेवा को देखते हुए 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी थी।