Knowledge : हिंदू धर्म में शेषनाग को भगवान का दर्जा दिया गया हैं। शेषनाग पर इस तीनो लोक के मालिक श्रीहरि विष्णु विश्राम करते हैं। जिनको आदिशेष, नागराज व अंनत के नाम से भी जाना जाता हैं। हमने अक्सर सुना होगा कि इस पूरी पृथ्वी का भार शेषनाग के ऊपर हैं। लेकिन क्या आपको शेषनाग के बारे में पता हैं कि उनके माता-पिता कौन थे। व उनकी पत्नी तथा अन्य जानकारी नहीं पता तो चलिए आज हम आपको बताते हैं.

शेषनाग कौन थे-

महर्षि कश्यप की कद्दू व विनता नाम की दो पत्नियाँ थी। महर्षि कश्यप अपनी दोनों पत्नियों से समान प्रेम करते थे। एक बार महर्षि कश्यप ने अपनी दोनो, पत्नियों से वरदान मांगने को कहा- कद्रू ने एक सहस्त्र समान नागों को पुत्र रूप में पाने की मांग की थी। लेकिन विनता ने केवल दो पुत्र मांगे जोकि कद्रू के हजार नागों से बलशाली थे। कश्यप के वरदान के फल स्वरूप विनता ने दो व कद्रू ने हजार अंडे दिए। दोनों ने अपने अण्डों को उबालने के लिए गर्म बर्तनों में रख दिया। 500 वर्ष बाद शेषनाग का जन्म हुआ। वह सारे ग्रहों को अपनी कुंडली पर रखे हुए हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि जब शेषनाग सीधे चलते हैं तब ब्रह्मांड में सब सही रहता हैं और जब शेषनाग कुंडली के आकार में आ जाते हैं तो प्रलय आ जाता हैं। इसके साथ ही भगवान विष्णु के भक्त के साथ-साथ उनके अवतारों में भी उनका सहयोग करते हैं। जैसे की द्वापर युग के कृष्ण अवतार में शेषनाग जी ने बलराम जी का अवतार लिया था। जब वसुदेव जी भगवान कृष्ण भगवान को टोकरी में लेकर नंद जी के यहाँ आ रहे थे।

शेषनाग को मिला श्राप-

मान्यताओं के अनुसार एक बार कद्रू व विनता कहीं जा रही थी। तो उन्हें समुद्र मन्थन के समय निकला हुआ उच्चैःश्रवा नाम का सात मुखों वाला घोड़ा दिखा। विनता ने कहा कि- देखों दीदी इस घोड़े का रंग ऊपर से नीचे तक सब स्थानों पर से सफेद हैं। कद्रू ने कहा कि- नहीं विनता इस घोड़े की पूंछ काले रंग की हैं।

कद्रू ने विनता को अपनी दासी बनाने के लिए अपने पुत्र नागों से कहा कि- कई नागों ने उसकी आज्ञा मान ली लेकिन ज्येष्ठ पुत्र शेषनाग तथा मंझले पुत्र वासुकी व कुछ अन्य नागों से कहा। कई नागों ने उसकी आज्ञा मानली लेकिन ज्येष्ठ पुत्र शेषनाग तथा मंझले पुत्र वासुकी व कुछ अन्य नागों ने इस बात का विरोध किया तो कद्रू ने शेषनाग व वासुकी समेत उन सभी नागों को श्राप दे दिया। तुम पाण्डवन्शी राजा जनमेजय के नागयज्ञ में जलकर भस्म हो जाओगे।

कैसे मिली शेषनाग को श्राप से मुक्ति-

श्राप पाने के बाद शेषनाग व वासुकी अपने भाइयों व माता को छोड़कर अनन्त ने गन्धमादन पर्वत पर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वर मांगा कि उनका मन सदा धर्म की ओर झुका रहे तथा वे भगवान नारायण के सेवक व सहायक बने रहे। इसके अलावा उन्होने वरदान दिया कि वो पृथ्वी को अपने फणों से उठाए रहेंगे। जिससे पृथ्वी का संतुलन बना रहेगा। तो वहीं छोटे भाई वासुकी का राजतिलक हुआ और व राजा बना गए। वासुकी जैसे ही कैलाश पर गए तक्षक का राजतिलक हुआ। वासुकी ने भी भगवान शंकर की मद्द से मुक्ति पाई।

शेषनाग जी के भाई-

शेषनाग जी के अन्य छोटे भाई- वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म, कालिया, धनञ्जय, शन्ख आदि नाग थे।

शेषनाग की पत्नी कौन हैं-

शेषनाग की पत्नी नागलक्ष्मी हैं। जो त्रेतयुग में जब शेषनाग ने लक्ष्मण जी का रूप लिया तब उन्होने माता सीता की बहन उर्मिला व लक्ष्मण जी की पत्नी बनी थी।