Most Beautiful Spy: दुनिया की वो जासूस जो खूबसूरत थी, फेमस भी थी। समाज के रीति-रिवाजों के परे जाने का शौक था और यही वजह थि कि वो लोगों की नजरों में आ गई। जिसके बदा उसकी जिंदगी बदल गई और उसका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। हम बात कर रहे हैं, मार्गरेथा गरडुड्डा जेली उर्फ माता हारी की, जिसने 20वीं सदी में यूरोप समेत दुनिया में ऐसा नाम कमाया कि उसकी मौत के 100 साल बाद भी लोग उसकी चर्चा करते हैं।

कौन हैं माता हारी-

माता हारी का जन्म 1876 नीदरलैंड में हुआ ता। बचपन तो अच्छा ही बीता था मगर माता-पिता के तलाक के बाद माँ की मृत्यु हो गई। यही वजह थी कि उन्होंने कम उम्र में ही नीदरलैंड के एक फौजी से शादी कर ली थी। जोकि उम्र में उनसे बड़ा था। उस दौरान इंडोनेसिया में तैनात था। इस वजह से माता हारी उसके साथ कुछ समय तक वहाँ रहने के लिए गई। उनको दो बच्चे हुए, पर पति-पत्नि के बीच झगड़े बढ़ने लगे। इस वजह से माता हारी उसके साथ कुछ समय तक यहाँ रहने के लिए गई। उनके दो बच्चे हुए पर पति व पत्नि के बीच झगड़े बढ़ने लगे। इसी दौरान पति को सिफिलीज नाम की बीमारी हो गई और वो बेटे को भी लग गई। जिससे उसकी मौत हो गई। दोनो ने नीदरलैंड लौटकर तलाक ले लिया।

माता हारी अकेले, गुमनामी में जिंदगी नहीं बिताना चाहती थी। इसलिए वो फ्रांस चली गई व इंडोनेशिया में कुछ समय तक रहने के बाद से उसने अपने लिए एक एशियाई नाम, माता हारी चुन लिया। उन्होंने बतौर डांसर व स्ट्रिपर काम करना शुरू कर दिया। 1905 में जब पेरिस में उसका पहला परफोर्मेंस एक हॉल में हुआ तो उसे देखने पेरिस के कम से कम 600 लोग आए थे। उनकी खूबसूरती के लोग कायल हो गे। जिसके बदा यूरोप के कई शहरो में माता हारी परफार्मेंश करने लगी।

इसी दौरान उनकी मुलाकात एक रूसी सैनिक से हुई जिससे उनको प्यार हो गया और उसके साथ घर बसाना चाहती थी। लेकिन पैसा नहीं था। जिसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय खुफिया विभाग के अधिकारी ने माता हारी को विश्व युद्ध में जर्मन सेना की जासूसी करने के लिए नियुक्त किया। उसे जर्मनी भेजा गया और जहाँ उसने कई लोगों से पहचान बनाई व अपने हुस्न का जादू चलाया। उन्होंने कई गोपनीय जानकारियाँ फ्रांसीसी सैनिको को दी।

रिपोर्ट्स की माने तो उसे जर्मनी की ओर से 20 हजार फ्रैंक दिए गए थे। जिससे वो एजेंट बन जाए व फ्रांस की गोपनीय चीजे दे। इसी आरोप के बाद अधिकारियो ने माता हारी के ऊपर डबल एजेंट का आरोप लगा। इसके बारे में पेसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर व मातात हारी पर बायोग्राफी लिखने वाली लेखिका पेट शिपमैने ने लिखा हैं।जिसके बाद 50 हजार फ्रांसीसी सैनिको ने उनको 15 अक्टूबर 1917 में गोलियों से भूनकर मार दिया।