Shakuntala Devi जिनको बोला जाता था ह्यूमन कम्प्यूटर बन चुकी हैं इनपर फिल्म
Shakuntala Devi Birth Anniversary: 4 नवंबर 1929, जब सर्कस में करतब दिखाने वाले एक कन्नड़ व्यक्ति के घर एक बच्ची ने जन्म लिया। तब शायद किसी ने सोचा भी ना होगा कि ये बच्ची एक दिन अपनी बुद्धिमत्ता से ना केवल अपने राज्य का ही अपितु पूरे भारत का नाम रोशन करेगी। परिवार में ही एक बुजुर्ग हस्तविद्या के जानकार थे।
उन्होंने भविष्यवाणी की- इस बच्ची को भगवान का वरदान मिला हुआ हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि शकुंतला देवी स्कूल नहीं गई लेकिन 13 अंक वाले दो नंबरों का गुणनफल महज 28 सेकंड में बता कर अपना नाम 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में दर्ज करा लिया। 1977 में उन्होंने 'दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुअल्स' किताब लिखी, जिसे भारत में समलैंगिकता पर आधारित पहली पुस्तक कहा जाता हैं।
इन पर फिल्म भी बनी हैं, जिसमें इनका किरदार विद्या बालन ने निभाया था। इन्होने कुकरी पर भी किताबें लिखी थी। ज्योतिष विज्ञान का भी उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान था।
कम्यूप्टर को हरा दिया-
यदि किसी आम व्यक्ति से कहा जाए कि इन डिजिट्स का 7,686,369,774,870 और 2,465,099,745,779 को गुणा कर के आंसर बताएं तो वो इसे करने में काफी लम्बा समय व्यतीत कर देगा। या फिर वो मोबाइल व गैजेट्स का प्रयोग करेगा। लेकिन शकुंतला देवी ने मात्र 28 सकेंड में इसे साल्व कर दिया था। लंदन के इंपीरियल कॉलेज में उन्होंने यह कमाल करके दिखाया जाता हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि 1977 में तो उन्होंने 188132517 का घनमूल तुरंत बताकर अमेरिका में कंप्यूटर को भी हरा दिया था।
महज 4 साल में लिया प्रतियोगिता में हिस्सा-
उनके पिता को शकुंतला के इस प्रतिभा के बारे में तब ही पता लग गया था। जब वह महज 3 साल की थी। और पाँच साल आते-आते शकुंतला गणित के अच्छे-अच्छे सवाल को हल करने लगी थी। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में एक बड़े कार्यक्रम में उन्होंने महज 4 साल की उम्र में हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था।
कभी नहीं गई स्कूल-
ऐसा कहा जाता हैं कि जब एक बार इस बारे में जब बीबीसी ने उनसे सवाल किया तो उनका जवाब था- "यही तो बात है न! मैं कभी स्कूल नहीं गई, फिर भी मैथ में ऐसी हूं. अंग्रेजी बोलती हूं, नोवेल भी लिखे हैं. तमिल भी नहीं सीखा, लेकिन तमिल में कहानियां लिखी है। बस बात करते-करते भाषाएं सीख गई।
उनपर हुए रिसर्च-
शकुंतला देवी की प्रतिभा से हैरान कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के प्रोफेसर आर्थर जेंसन ने 1988 में उनपर रिसर्च किया था। और उन्होने कहा था कि नोटबुक पर लिखने से पहले ही वो अंसर दे देती थी।