तवांग मठ की कहानी जिसने हमेशा चीन के खिलाफ भारत को किया सपोर्ट
Tawang Math History: अरुणाचल प्रदेश में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद तवांग मठ ने चीन को चेतावनी दी हैं। मठ के भिक्षु लामा येशी खावो ने कहा, चीन को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि यह 1962 का नहीं, 2022 का भारत हैं। यह मोदी सरकार का समय है। चीनी सरकार हमेशा दूसरे देशों की जमीन पर नजर रखती है, यह गलत है। बता दे कि जब 1962 में भारत व चीन के बीच झड़प हुई थी। तब तवांग ने भारत का सपोर्ट किया था।
बता दे कि अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में भी अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया है, लेकिन चीन तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है। यही वजह हैं कि वो उत्तरी हिस्से तवांग पर भी अपना हक जताता हैं। जब 1962 में युद्ध हुआ था। तब भी मठ ने भारत का सपोर्ट किया था। बताया जाता हैं कि चीनी सैनिक मठ में घुस गए थे। लेकिन युद्ध विराम की वजह से उन्हें वापस जाना पड़ा था।
तवांग मठ का इतिहास-
तवांग मठ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ हैं। तवांग मठ का निर्माण 1680 में मेराक लाला लोद्रे ग्यास्तो ने कराया था। यहां 500 से अधिक बौद्ध भिक्षु रहते हैं। इस मठ को गालडेन नमग्याल लहात्से के नाम से भी जाना जाता हैं। भगवान बुद्ध की 28 फीट ऊंची की प्रतिमा और तीन मंजिल बने सदन यहाँ का मुख्य केंद्र हैं।
जानिए इसका नाम तवांग क्यो पड़ा-
मठ की सबसे बड़ी बात हैं, मठ में पुस्तकालय भी है जहां प्राचीन किताबों और पांडुलिपियों का संकलन है। पांडुलिपियां 17वीं शताब्दी की हैं। बताया जाता हैं कि तवांग मठ का निर्माण कराने वाले मेराक लामा को मठ की जगह चुनने में दिक्कत हो रही थी। उस समय एक काल्पनिक घोड़े ने उनकी मदद की थी। जिसकी वजह से 'ता' शब्द का अर्थ होता है घोड़ा और 'वांग' का मतलब होता है आशीर्वाद दिया हुआ। उस दिव्य घोड़े के आशीर्वाद से इस जगह का नाम तवांग पड़ा था। तवांग की अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, यह जगह 7वीं शताब्दी के राजा कलावंगपो और खांड्रो ड्रोवा जांगमो की कहानी से भी जुड़ी हैं। जिसे आरटीए नाग मंडल सांग के नाम से भी जाना जाता हैं।