रानी चेन्नम्मा जिनको कर्नाटक की लक्ष्मीबाई कहा जाता हैं, जानिए इनके बारे में

Rani Chennamma Koun Thi: रानी चेन्नम्मा के बारे में कहा जाता हैं कि वो कर्नाटक की लक्ष्मीबाई थी। उनके आगे अंग्रेजो ने घुटने टेक दिए थे। उन्होने जिस शौर्य के साथ अंग्रेजो से लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद अंग्रेजो के छक्के छूट गए थे। जब 20 हजार की तदाद में अंग्रेजो ने कित्तूर राज्य की तरफ आगमन किया था। उस समय कित्तूर की फौज अंग्रेजो के सामने कुछ नहीं थी। उस समय रानी चेन्नम्मा ने अकेले ही अपनी सेना के साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ जंग का आगाज कर दिया। अक्टूबर 1824 की वो तारीख आज भी भुलाई नहीं जा सकती हैं। जब मुठ्ठीभर सिपाहियो के साथ अंग्रेजो को रणभूमि में रानी चेन्नम्मा ने चारो खाने चित्त कर दिया थ।
इस युद्ध में अंग्रेजो को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था। अंग्रेजो का एजेंट सेंट जॉन मारा गया था। सर वॉल्टर एलियट व स्टीवेंसन बंधक बनाया गया था। अंग्रेजो की हालात ऐसी हो गई थी। उन्हें घुटने टेकने पड़ गए थे। व युद्ध विराम का ऐलान कर दिया गया था। रानी बहुत-ही वीर व कर्तव्यनिष्ठ थी। उन्होने युद्ध भूमि में युद्ध के नियमों का पालन किया था। व बंधक किए गए अधिकारियों को छोड़ दिया था। मगर अंग्रेजो की आदत हमेशा से ही पीठ पर छूरा फोकने की थी। उन्होने ऐसा ही किया। कुछ दिन बाद अंग्रेजो ने उससे ज्यादा तदाद में सैनिको के साथ कित्तूर पर हमला बोल दिया था। रानी इस हमले के लिए अभी तैयार नहीं थी। उन्होने मुकाबला तो ले लिया था। लेकिन इस बार अंग्रेज भारी पड़ रहे थे। रानी चेन्नम्मा को कैद कर बेलहोंगल किले में ले गए। आज ही के दिन 21 फरवरी 1829 को वीरगति को प्राप्त हुई थी।
कर्नाटक की लक्ष्मीबाई-
रानी चेन्नमा को कर्नाटक की लक्ष्मीबाई इसलिए भी कहा जाता क्योकि उनकी कहानी रानी लक्ष्मीबाई से मिलती-जुलती थी। वो अस्त्र-शस्त्र चलाने में निपुण थी। उन्हें संस्कृत, कन्नड़, मराठी व उर्दू भी आती थी। उनका जन्म 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के बेलगामी के एक छोटे गाँव कंकाली में हुआ था। इनके पिता का नाम धूलप्पा व माता का नाम पद्मावती थी।
बाग से किया था सामना-
बेलगावी में एक कित्तूर नाम का छोटा-सा कस्बा था। जहाँ पर एक बाग का आतंक फैला हुआ था। उस बाग को मारने के लिए वहाँ के राजा मल्लासारजा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए गए थे। तभी जब राजा ने उस बाग पर निशाना साधा तो वो बाग घायल होकर गिर पड़ा। जब राजा ने बाग के पास जाकर देखा तो बाग के दो तीर लगा हुआ था। जिसमें से एक तीर तो उन्होने चलाया था। और दूसरा तीर रानी चेन्नम्मा ने, जिसके बाद आगे चलकर राजा ने रानी चेन्नमा से विवाह कर लिया। विवाह के कुछ समय बाद अचानक राजा की मृत्यु हो गई। उनका एक बेटा था। उसकी भी मृत्यु हो गई। फिर उन्होने शिवलिंग्गपा नाम के एक बालक को गोद लिया था।
अंग्रेजो के हड़प नीति के खिलाफ-
जब रानी ने शिवलिंग्गपा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। तब अंग्रेजो ने हड़प नीति के तहत रानी को ऐसा करने से मना किया और शिवलिंग्गपा को राज्य से बाहर भेजने का आदेश दिया। रानी ने नहीं माना । जिसके बाद अंग्रेजो ने युद्ध की घोषणा कर दी थी। उनकी वास्तव में नजर कित्तूर के खजाने पर थी। जहाँ 1857 में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो को धूल चटाई थी। तो वहीं रानी चेन्नम्मा ने 1824 में ही ये कारनामा कर दिया था। 1977 में भारत सरकार ने रानी चेन्नम्मा की शौर्य शक्ति को यादगार बनाने के लिए उनका डाक टिकट जारी किया था।