Knowledge:उर्दू भाषा के ऐसे सैकड़ो शब्द हैं, जो हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रयोग करते हैं। हिंदी बोलते समय हम सुबह, शाम, शर्त ऐसी बहुत से शब्दों का प्रयोग करते हैं। जोकि उर्दू से मिलीजुली हैं। उर्दू का जन्म हिन्दुस्तान में हुआ, समय के साथ यह विकसित होती चली गई लेकिन धीरे-धीरे सांप्रदायिकता की शिकार होती गई और उर्दू को मुस्लिमों की भाषा कहा जाने लगा। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताते हैं कि उर्दू कैसे पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा बन गई हैं।

उर्दू का जन्म भारत में हुआ था। हिंदू व उर्दू दोनो ही एक दूसरे से इस तरह से जुड़े हैं जैसे भाई-बहन हैं। दोनो को ही इंडो-आर्यन भाषा कहा जाता हैं और दोनो की जड़ एक ही हैं। यदि आज किसी भारतवाषी से पूछा जाए कि वो उर्दू जानता हैं। तो ज्यादातर का जवाब नहीं होगा लेकिन रोजमर्रा में बोले जाने वाले उर्दू के शब्द उन्हें बताए जाएं तो उन्हें खुद हैरानी होगी कि हिंदू या मुस्लिम किसकी भाषा उर्दू हैं।

ब्रिटिश शासन के दौरान धीरे-धीरे हिंदू व मुस्लिमों के बीच भाषा को लेकर अलग सोच दिखने लगी। हिंदुओं के बीच देवनागरी लिपि को बढ़ावा दिया जाने लगा। इस दौर में अरबी व फारसी को संस्कृति के शब्दों से बदला जाने लगा। इसी तरह मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अरबी व फारसी के शब्दों के साथ संस्कृत से मिले शब्दों का प्रयोग करना बंद कर दिया। इस तरह दोनों भाषाओं को लेकर अलग-अलग नाम प्रचलित होने लगे। हिंदी व उर्दू लेकिन सच तो यही हैं कि दोनों हिंदुस्तान की भाषा हैं।

कब हुआ उर्दू का जन्म-

उर्दू काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, इस भाषा का जन्म 12वीं शताब्दी में हुआ हैं। यह भाषा उत्तर-पश्चिम के क्षेत्रीय अपभ्रंशो से संपर्क स्थापित करने के लिए उभर कर सामने आई हैं। इस भाषा के पहले बड़े जन कवि महान फारसी कवि व अमीर खुसरों, इन्होंने दोहे, पहलेलियाँ व कहमुकरनियां कही हैं।

मध्य कालीन युग में इसे कई नामों से जाना गया। जैसे- हिन्दवी, जबान-ए-हिंद, रेखता, गुजरी, दक्कनी व जबान-ए-देहली कई ऐसे सबूत हैं। जो इस बात को बताते हैं कि ग्यारहवीं शताब्दी में इसका नाम हिन्दुस्तानी था। जिसके बाद उर्दू कर दिया गया।

कहाँ से आया उर्दू शब्द-

उर्दू काउंसिल के मुताबिक, उर्दू तुर्की भाषा का शब्द हैं। जिसका मतलब हैं छावनी या शाही पड़ाव, पहले इस शब्द का प्रयोग दिल्ली के लिए किया गया। जो कई दशकों तक मुगलों की राजधानी रही है। इसके बावजूद 19वीं शताब्दी की शुरूआत तक उर्दू के कई दिग्गज लेखक इसे हिन्दवी करते थे। हिंदी लिखने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता हैं तो वहीं उर्दू के लिए अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग किया जाता हैं।