Chhath Pooja 2022: जानिए छठ पूजा के पीछे क्या कहानी है व कौन हैं छठ माता
Chhath Pooja 2022 : छठ पूजा हर साल षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला पर्व हैं। छठ पूजा की शुरुआत 28 अक्टूबर शुक्रवार से होगी। 29 अक्टूबर को खरना है। 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, उसके अगले दिन सुबह यानी 31 अक्टूबर को उदयगामी हैं। इस पर्व का महत्व बिहार, पूर्वांचल व अन्य राज्यो में हैं। अब तो ये पर्व पूरे भारत में मनाया जाने लगा हैं। इस पर्व की महत्वता महाभारत व रामायण काल से जुड़ी हुई हैं।
Chhath Pooja History : छठ पूजा के बारे में कहा जाता हैं कि इसका महत्व रामायण व महाभारत के समय से मिलती हैं। महाभारत काल में इसकी शुरूआत कर्ण ने की थी। वो भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वो उनकी पूजा करते थे। इसके अलावा द्रौपदी ने भी छठ माता की पूजा की थी। जब पांडव जुआ में अपना सब कुछ हार गए थे। तब छठ माता की पूजा द्रौपदी ने की थी। और उनकी कृपा से उनको सबकुछ वापस मिल गया।
इसके अलावा माता सीता ने भी छठ माता की पूजा की थी। कहा जाता हैं जब 14 वर्ष के वनवास से राम जी, माता सीता व भईया लक्ष्मण आए थे। तब भगवान राम ने राजसूय ज्ञय कराया था। जिसमें सभी ऋषि मुनि आए थे। लेकिन मुग्दल ऋषि नहीं आए। उसके बाद भगवान राम व माता सीता उनके आश्रम गए और वहाँ पर उन्होने सूर्य भगवान को खुश करने के लिए माता सीता को पूजा की विधि बतायी। जिसके बाद छहः दिनो तक माता सीता ने सूर्य भगवान की आराधना की थी।
ऐसा कहा जाता हैं कि इस व्रत को करने से आपकी संतान सुखी रहती है और उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है। वहीं छठी मैय्या निसंतान लोगों की भी खाली झोली भर देती हैं। इस लिए इस पर्व की महत्वता और अधिक भी हैं। इसके पीछे एक और पौराणिक कथा हैं कहा जाता हैं कि राजा प्रियंवद की काफी समय से कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी ने पूर्ण ऋद्धा के साथ यज्ञ किया। जिसकी वजह से मालिन को पुत्र रत्न की उत्पत्ति हुई लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे थे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, 'सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। मैं ब्रह्मा जी की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं सृष्टि में सभी बच्चों की रक्षा करती हूं। जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान का वरदान देती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रेरित करो।' राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। तब से छठ को त्योहार के रूप में मनाने और व्रत करने की परंपरा शुरू हो गई।
कौन हैं छठ माता; पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ माता भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं षष्ठी मैय्या। इस व्रत में षष्ठी मैया का पूजन किया जाता है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता हैं कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया था। जिसमें से उनका दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया था। तो वही सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी मां का एक प्रचलित नाम षष्ठी है, जो छठी मईया के नाम से जानी जाती हैं।