Atal bihari Vajpayee Death Anniversary: पढ़िये अटल जी की कविताऐं भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
Atal bihari Vajpayee Death Anniversary: आज भारत के महान राजनितिक पुरूष जिनका सम्मान विपक्ष भी करता था। जिन्होने कभी किसी से लड़ाई मोल नहीं ली। जो ना केवल अपनी राजनितिक छवि से ही अपितु वो अपनी कविताओं की वजह से भी देश-दुनिया में प्रसिंद्ध हैं। आज उसी महान पुरूष का नाम हैं अटल बिहारी बाजपेयी जिनकी आज पुण्यतिथि हैं। उनकी पूर्ण तिथि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति व योगी आदित्यनाथ समेत अन्य लोगो ने उन्हे श्रद्धांजलि दी हैं। चलिए आज हम अटल जी की पुर्णतिथि पर उनकी कुछ कविताओं के बारे में जानते हैं। अटल जी ने कुल 51 कविताऐं लिखी थी।
अटल बिहारी बाजपेयी की कविताऐं-
दो अनुभूतियां-
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।लगी कुछ ऐसी नजर
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकीहार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं-
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये, मरेंगे तो इसके लिये।
मौत से ठन गई-
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा जिन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
कौरव कौन, कौन पांडव-
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
मैंने जन्म नहीं मांगा था-
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करुँगा।
जाने कितनी बार जिया हूँ,
जाने कितनी बार मरा हूँ।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूँ।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूँगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?
पूर्व जन्म के पूर्व बसी—
दुनिया का द्वारचार करूँगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
जीवन बीत चला-
जीवन बीत चला
कल कल करते आज
हाथ से निकले सारे
भूत भविष्यत की चिंता में
वर्तमान की बाजी हारे
पहरा कोई काम न आया
रसघट रीत चला
जीवन बीत चला।
हानि लाभ के पलड़ों में
तुलता जीवन व्यापार हो गया
मोल लगा बिकने वाले का
बिना बिका बेकार हो गया
मुझे हाट में छोड़ अकेला
एक एक कर मीत चला
जीवन बीत चला।