ज्ञानवापी मामले में कार्बन डेटिंग क्या हैं, जिसे लेकर आज फैसला आया हैं

Gyanvapi Case : ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में हिन्दू पक्ष द्वारा ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक परीक्षण कराने के मांग पर वाराणसी कोर्ट में आज फैसला था। जिसपर कोर्ट ने आज फैसला सुनाने से इंकार कर दिया हैं। अब कोर्ट में अगली सुनवाई 11 अक्टूबर 2022 को होगी। सर्वे के दौरान जो कथित तौर पर शिवलिंग बरामद हुआ है वह इसकी प्रॉपर्टी है या नहीं, कोर्ट ने वैज्ञानिक जांच पर इन्वेस्टिगेशन मांगा हैं। जिसको लेकर कोर्ट ने पिछली बार 7 अक्टूबर को फैसले की तारीफ दी गयी थी। लेकिन आज सुनवाई टाल दी गयी हैं। आज जिला जज ने हिंदू पक्ष कार और मुस्लिम पक्ष कार से एक बार बात करने के बाद 11 अक्टूबर की तारीख तय किया हैं।
कार्बन डेटिंग क्या हैं-
कार्बन डेटिंग वो विधि है, जिसकी मदद से उस वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है जो काफी पुरानी हो चुकी हैं। कार्बन डेटिंग के जरिये वैज्ञानिक लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु और पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर व मिट्टी से भी उसकी बेहद करीबी वास्तविक आयु का पता लगाया जाता हैं। ऐसी हर चीज जिसमें कार्बन के अवशेष मिलते हैं। उनकी जाँच इसी विधि से होती हैं।
कार्बन डेटिंग कैसे होती हैं-
वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप होते हैं। कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14 मौजूद रहते हैं। कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 की जरूरत होती है। इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात बना रहता हैं। जब कोई जीव मर जाता हैं तो इनका वातावरण से कार्बन का आदान-प्रदान भी बंद हो जाता हैं। जिससे कार्बन-12 से कार्बन-14 के अनुपात में बदलाव होता हैं। इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता हैं। यह कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा घटने लगती है। इसमें कार्बन-14 लगभग 5,730 सालों में अपनी मात्रा का आधा रह जाता है। इसे हाफ-लाइफ कहते हैं। अगर चट्टान के नीचे कार्बनिक पदार्थ, मृत पौधे या कीड़े फंसे हुए हों, तो वे इस बात का संकेत दे सकते हैं कि वो चट्टान, या कोई अन्य चीज उस जगह पर कब से मौजूद हैं।