UP News: यूपी का एक ऐसा राज्य जो भारत के आजाद होने से पहले ही अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया था। 19 अगस्त का दिन बलिया के लिए खास होता है। वर्ष 1942 में इसी तारीख को चंद दिनों के लिए ही सही, बलिया अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया था। इस साल भारत ने अपना 75 स्वतंत्रता दिवस मनाया हैं। लेकिन बलिया कुछ ही दिनो के लिए 1942 में आजाद हो गया था। सीएम योगी आदित्यनाथ बलिया बलिदान दिवस के अवसर पर बलिया में पहुँचकर लोगो को संबोधित किया और स्वतंत्रता सेनानियों को नमन किया।

योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) बलिया बलिदान दिवस (Ballia Anniversary) पर शुक्रवार को पहुंचे थे। वह करीब एक घंटे तक मौजूद रहे और जिला कारागार से ऐतिहासिक जुलूस को हरी झंडी दिखाई गयी। देश की स्वतंत्रता के 75 सालों में यह पहला अवसर है, जब राज्य के कोई मुख्यमंत्री बलिया बलिदान दिवस समारोह में शामिल हुआ है।

बलिया बलिदान दिवस इतिहास-

19 अगस्त बलिया के लिए गौरवशाली दिन है। 1942 में इसी दिन बागी बलिया के सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत देकर ब्रिटानी हुकुमत से आजादी हासिल कर ली थी। और भारत का एक ऐसा जिला बन गया था। जिसने 15 अगस्त 1947 से पहले ही आजादी प्राप्त कर ली थी। चित्तु पांण्डेय को जिलाधिकारी की कुर्सी पर और राम दहिन ओझा को पुलिस अधीक्षक की कुर्सी पर बैठा दिया गया । चित्तू पांडेय के नेतृत्व में कुछ दिनों तक स्थानीय सत्ता बना रही थी। अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे पर अमल करते हुए बलिया में लोग चित्तू पांडेय के नेतृत्व में पूरी तरह बगावत पर आमादा हो गए। इस बीच चित्तू पांडेय व उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। चूंकि उस समय चित्तू जिले के सर्वप्रिय नेता थे, लिहाजा जन आक्रोश और भड़क उठा। हड़ताल हो गया। छात्र, किसान, व्यापारी सब आंदोलन में कूद पड़े थे।

जिसके बाद हड़ताली जुलूस पर पुलिस ने फायर कर दिया लेकिन बलिया के बगावती तेवर में कोई कमी नहीं आई थी। लोग शहीद होते रहे लेकिन इस दौरान अंग्रेजी शासन के अलग-अलग प्रतीकों पर क्रांतिकारियों के कब्जा होता चला गया 19 अगस्त 1942 को आंदोलनकारियों के आगे तत्कालीन कलेक्टर ने घुटने टेक दिए।

आपको बता दे 1942 के आंदोलन में बलिया के निवासियों ने स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंका था, बागी बलिया के सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत देकर ब्रिटानी हुकुमत से लोहा लेते हुए जिला कारागार का दरवाजा खोल जेल मे बन्द अपने साथी क्रांतिकारियों को आजाद कराया। लेकिन बाद में फिर से अंग्रेजो ने अपना हुकुमत जमा लिया। इसलिए इस दिन को बलिया बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। बलिया की यह आजादी तब पांच दिन की ही रही थी। लेकिन इन पाँच दिन की आजादी ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी।

बलिया की जन्मभूमि ने दिया एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी-

  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ की सैन्य छावनी से पहली बगावत करने वाले मंगल पांडेय की जन्मभूमि बलिया में अलग ही जुनून था। इस जुनून को परवान चढ़ाने वाले थे गांधीवादी क्रांतिकारी चित्तू पांडेय
  • 19 अगस्त 1942 को। इस तारीख से दस दिन पहले महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर बर्तानिया हुकूमत के खिलाफ निर्णायक आंदोलन शुरू किया था।